शिमला. हिमाचल प्रदेश सरकार अपना स्वतंत्र पे-कमीशन नहीं बनाएगी। मुख्य
सचिव की ओर से हाईकोर्ट में दायर हलफनामे में कहा है कि सरकार फिलहाल स्वतंत्र पे-कमीशन
बनाने के हक में नहीं है। सरकार का कहना है कि किसी भी राज्य का अपना स्वतंत्र पे-कमीशन
बनाना जरूरी नहीं है।
सरकार की दलील है कि देश में 21 राज्य ऐसे हैं, जिनके पास अपना स्वतंत्र पे-कमीशन नहीं है। इनमें 20 राज्य केंद्रीय पे-कमीशन की सिफारिशों को अमल में लाते हैं, जबकि हिमाचल प्रदेश पंजाब पे-कमीशन की सिफारिशों को मानता है। सरकार का कहना है कि प्रदेश में अपना स्टॉफ पैटर्न होने के कारण पंजाब पे-स्केल की सिफारिशों को ज्यों का त्यों नहीं अपनाया जाता। प्रत्येक वर्ग के लिए सोच समझ कर कमीशन की सिफारिशों पर अमल में लाया जाता है। जरूरी नहीं है कि इसके लिए अलग से पे-कमीशन बनाया जाए।
कोर्ट ने दिए थे निर्देश
सरकार को हाईकोर्ट की ओर से दिए गए स्वतंत्र पे-कमीशन बनाने के निर्देशों पर सरकार ने कहा है कि फिलहाल प्रदेश में वर्ष 2006 के पंजाब पे-कमीशन की सिफारिशों पर कर्मियों की पे रिवाइज की जा चुकी है। अत: अभी पे-कमीशन के गठन पर विचार नहीं किया जा रहा है।
सरकार ने कहा है कि जब भी नए पे स्केल रिवाइज किए जाते हैं] तब वह उच्च न्यायालय के आदेशों को संबोधित करेगी। सरकार की ओर से पंजाब पे स्केल रिवीजन पर ढुलमुल रवैये के कारण न्यायालय का दरवाजा खटखटाने वाले कुछ शिक्षकों की याचिकाओं की सुनवाई के दौरान हाईकोर्ट ने निर्देश दिए थे कि स्वतंत्र पे-कमीशन बनाया जाए।
इसलिए कोर्ट गए थे कर्मी
वेतनमानों का लाभ नहीं मिल पा रहा है। कोई भी फैसला लेने के लिए पंजाब पर निर्भर रहना पड़ता है। इससे कर्मचारियों को काफी वित्तीय नुकसान होता है।
क्या फायदा-क्या नुकसान
हिमाचल सरकार कर्मचारियों के वेतनमान के लिए पंजाब का अनुसरण करती है। राज्य के अलग वेतनमान आयोग की मांग लंबे समय से उठ रही है। वित्त विभाग का मत है कि इससे राज्य के कर्मचारियों को अधिक फायदा नहीं होगा, चूंकि राज्य के गंभीर वित्तीय हालत के कारण आयोग सकारात्मक सिफारिशें नहीं कर पाएगा। दस साल में एक बार आने वाली आयोग की सिफारिशों को लेकर ऐसा भी कहा जाता है कि सरकार अपने स्तर पर कुछ विशेष वित्तीय लाभ दे सकती है।
सरकार की दलील है कि देश में 21 राज्य ऐसे हैं, जिनके पास अपना स्वतंत्र पे-कमीशन नहीं है। इनमें 20 राज्य केंद्रीय पे-कमीशन की सिफारिशों को अमल में लाते हैं, जबकि हिमाचल प्रदेश पंजाब पे-कमीशन की सिफारिशों को मानता है। सरकार का कहना है कि प्रदेश में अपना स्टॉफ पैटर्न होने के कारण पंजाब पे-स्केल की सिफारिशों को ज्यों का त्यों नहीं अपनाया जाता। प्रत्येक वर्ग के लिए सोच समझ कर कमीशन की सिफारिशों पर अमल में लाया जाता है। जरूरी नहीं है कि इसके लिए अलग से पे-कमीशन बनाया जाए।
कोर्ट ने दिए थे निर्देश
सरकार को हाईकोर्ट की ओर से दिए गए स्वतंत्र पे-कमीशन बनाने के निर्देशों पर सरकार ने कहा है कि फिलहाल प्रदेश में वर्ष 2006 के पंजाब पे-कमीशन की सिफारिशों पर कर्मियों की पे रिवाइज की जा चुकी है। अत: अभी पे-कमीशन के गठन पर विचार नहीं किया जा रहा है।
सरकार ने कहा है कि जब भी नए पे स्केल रिवाइज किए जाते हैं] तब वह उच्च न्यायालय के आदेशों को संबोधित करेगी। सरकार की ओर से पंजाब पे स्केल रिवीजन पर ढुलमुल रवैये के कारण न्यायालय का दरवाजा खटखटाने वाले कुछ शिक्षकों की याचिकाओं की सुनवाई के दौरान हाईकोर्ट ने निर्देश दिए थे कि स्वतंत्र पे-कमीशन बनाया जाए।
इसलिए कोर्ट गए थे कर्मी
वेतनमानों का लाभ नहीं मिल पा रहा है। कोई भी फैसला लेने के लिए पंजाब पर निर्भर रहना पड़ता है। इससे कर्मचारियों को काफी वित्तीय नुकसान होता है।
क्या फायदा-क्या नुकसान
हिमाचल सरकार कर्मचारियों के वेतनमान के लिए पंजाब का अनुसरण करती है। राज्य के अलग वेतनमान आयोग की मांग लंबे समय से उठ रही है। वित्त विभाग का मत है कि इससे राज्य के कर्मचारियों को अधिक फायदा नहीं होगा, चूंकि राज्य के गंभीर वित्तीय हालत के कारण आयोग सकारात्मक सिफारिशें नहीं कर पाएगा। दस साल में एक बार आने वाली आयोग की सिफारिशों को लेकर ऐसा भी कहा जाता है कि सरकार अपने स्तर पर कुछ विशेष वित्तीय लाभ दे सकती है।