शिमला— प्रदेश उच्च न्यायालय ने मैटरनिटी लीव के मामले में नियमित व अस्थायी तौर पर लगी महिला कर्मियों में भेदभाव करने पर शिक्षा विभाग के निदेशक से जवाब तलब किया है। मुख्य न्यायाधीश कुरियन जोसेफ व न्यायाधीश धर्मचंद चौधरी की खंडपीठ ने कहा कि सरकार नियमित व अस्थायी कर्मियों में भेदभाव पैदा कर रही है। मैटरनिटी लीव के मामले में अदालत ने पाया कि सरकार नियमित व अनुबंध महिला कर्मियों के बीच भेदभावपूर्ण रवैया अपना रही है। नियमित महिला कर्मियों को 135 दिनों की मैटरनिटी लीव दी जाती है, जबकि अनियमित वर्ग को 12 हफ्तों तक की छुट्टी का प्रावधान किया गया है। प्रार्थी गीता का आरोप है कि सरकार मैटरनिटी लीव के मामले में भेदभावपूर्ण रवैया नहीं अपना सकती, क्योंकि ऐसा भेदभाव न तो न्यायपूर्ण है और नहीं तर्कसंगत। प्रार्थी का कहना है कि वह बतौर पैरा टीचर नियुक्त हुई हैं और उसे मैटरनिटी लीव के 12 सप्ताह पूरे होते ही वापस नौकरी पर आने को कहा गया है। यह आदेश भेदभावपूर्ण स्थिति उत्पन्न कर रहे हैं। न्यायालय ने आदेश दिया कि प्रार्थी को 12 सप्ताह की छुट्टी पूरी होने के पश्चात वापस नौकरी ज्वाइन करने के लिए मजबूर न किया जाए। मामले की सुनवाई नौ जुलाई को होगी।
No comments:
Post a Comment