Saturday, 21 April 2012

हिन्दु उत्तराधिकार अधिनियम की महान विसंगति


एक हिन्दु परिवार के मुखिया की मृत्यु पर उसकी 600 बीघा भूमि उसके 5 पुत्रों और एक विधवा को 100-100 बीघा समान भाग में मिल गई। कुछ समय के पश्चात उसका पुत्र (जिसकी पत्नी पहले ही मर चुकी थी) अकाल मृत्यु को प्राप्त हो गया । उसकी 100 बीघा भूमि हिन्दु उत्तराधिकार अधिनियम के अनुसार उसके 5 वर्षीय इकलौते पुत्र को 50 बीघा व विधवा माता को 50 बीघा चली गई । अब विधवा माता के पास 150 बीघा भूमि हो गई थी । कुछ दिन बाद विधवा माता का भी देहान्त हो गया । उसकी 150 बीघा भूमि उसके 4 जीवित पुत्रों व पूर्व मृतक पुत्र के बेटे प्रत्येक को 30-30 बीघा मिल गई । अब नाबालिग पोते के पास 50+30=80 बीघा तथा उसके चाचा प्रत्येक 100+30=130 बीघा के मालिक बन गए थे । अगर के पिता की असमय मृत्यु न हुई होती तो वह अपने अन्य चाचा लोग के समान 120 बीघे का मालिक होता । हिन्दु उत्तराधिकार अधिनियम का यह प्रावधान बहुत बार प्राकृतिक न्याय के सिद्धान्त की धज्जियां उड़ा देता है । 

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